अगर आपको रुझान psychology, neuroscience, और human behavior में है, तो यह किताब इस बात पर एक unique perspective दिखाती है कि हमारा subconscious mind हमारे actions और decisions को कैसे shape देता है।
यदि आप human behavior को drive करने वाली hidden forces का पता लगाना चाहते हैं, तो यह किताब एक eye-opening experience हो सकती है।
परिचय
आज हम बात करने वाले हैं “Subliminal: How Your Unconscious Mind Rules Your Behavior” किताब के बारे में, जिसमें हम जानेंगे, कि हमारा Unconscious mind, हमारे व्यवहार को कैसे rule करता है। इसे Leonard Mlodinow ने लिखा है।
क्या आपको पता है, हम decision कैसे लेते हैं? क्या हम सभी facts को सामने रखकर अपना opinion बनाते हैं? या अपने subconscious mind के suggestion से decision लेते हैं? यहीं सब हम इस किताब में विस्तार से समझने वाले हैं। Conscious इंसान बनकर facts पर decisions लेने की बजाय, हम अपने subconscious mind से चलते हैं।
हमारे subconsious mind का influence हमें अजीब और factless चीजें करने के लिए inspire कर सकता है। इस book summary को पढने से आप धीरे-धीरे life से जुड़े जरूरी सवालों के जवाब समझ पाएंगे।
किताब में ऐसे 13 विचार बताएं गए हैं जिन्हे समझकर आप subconsious mind के काम करने के तरीके को समझ जायेंगे।
विचार 1
कई principles ने subconsious mind को समझने की कोशिश की लेकिन modern technique ने आखिरकार इसकी शालीनता को सबको समझा दिया।
सदियों से, philosophers ने subconsious mind के nature बारे में अंदाज़ा लगाया है। Example के लिए, 1700 के दशक में Immanuel Kant ने बताया था कि हमारा mind objective realities को experience नहीं करता है, बल्कि यह अपनी खुद की reality बनाता है।
फिर, 1900 में, Sigmund Freud ने subconscious mind की एक explanation की, जो बहुत प्रसिद्ध हुई। Freud ने कहा कि negative attractions और painful memories के कारण subconscious mind अक्सर abnormal और unhealthy हो जाता है।
हालाँकि उस समय subconsious mind के secrets को unlock करना इतना मुश्किल था, इसलिए बाद में researches दुसरे areas में जाने लगें और कई scientists ने यह तर्क देना शुरू किया कि इंसान जानवरों की तरह थे, जिनमें computers की तरह complex लेकिन समझने लायक machine की तरह दिमाग था।
हालाँकि, 1980 के दशक तक नए research ने subconsious में हमारे interest को फिर से जगा दिया। और साथ ही नई technology ने आखिरकार हमें दिमाग के बनने और काम करने के process को समझने में capable बना दिया।
Functional magnetic resonance imaging नाम की technology ने neuroscientists को 3D precision के साथ दिमाग के blood flow में बदलाव और structure को scan करने में मदद की।
इस information से हमें subconscious को समझने में काफी मदद मिली हैं। इससे हम दिमाग की तीन interdependent layers के बारे में जानते हैं। सबसे गहरी और सबसे पुरानी layer, reptile है, जो सांस लेने, खाना खाने और लड़ाई या flying instinct जैसे कामो को करने के लिए जिम्मेदार है। फिर दूसरी layer है। इस हिस्से पर sophisticated पुरानी mammalian या limbic system होता है, जो subconscious social perception की आप society को लेकर कैसा सोचते और behave करते हैं, इसके लिए जिम्मेदार है।
इसके ऊपर neocortex है, जो goal से जुड़े actions और consious thought को बढ़ावा देता है। यह देखने, उंगलियों और चेहरे के भावों को express करने से भी जुड़ा है। हम इंसानों में यह बहुत ज्यादा पाया जाता हैं।
विचार 2
Subconsious mind हमारी senses से raw data collect करता है और इसे हमारे consious mind के लिए summarizes करता है।
अगर आपको एक तेज, अचानक से धमाका सुनाई देता है, तो संभावना है कि आप तुरंत respond करेंगे और अपने आप को बचाने की कोशिश करेंगे।
ऐसा इसलिए है क्योंकि जब आपका subconsious mind किसी खतरे को महसूस करता है, तो यह आपको खतरे से बचाने के लिए automaticallly काम करता है। Environment की यह subconsious awareness, हमारे पूर्वजों में consious awareness से बहुत पहले develop हुई थी।
इसका primary goal हमें जिन्दा रखना, possible खतरों से बचना और खाने और साथियों की तलाश करना था। हमारा subconsious mind इस data को हमारी सभी senses से इकट्ठा करता है और इसका इस्तेमाल हमें safe रखने के लिए करता है।
इसका एक बड़ा example light है। आँखों से मिली light का इन्स्तेमाल करके जो भी हम देखते हैं, उसको दिअग के एक छोटे से हिस्से में पहुंचाया और process किया जाता है जिसे visual cortex कहा जाता है। लेकिन जब लोगों का visual cortex ख़राब हो जाता है, तब भी subconsious mind चीज़ों को छुकर पहचान करने में हमारी मदद करता है। इसे blindness कहते हैं।
Example के लिए, एक इंसान जिसे stroke हुआ था और वह अंधा हो गया था, उसके दिमाग के दोनों visual hemispheres या देखने वाले cells damage हो गए थे, फिर भी उसकी आँखों में अभी भी normally रोशनी आ रही थी और उसका subconsious mind अभी भी इसका इन्स्तेमाल करने में capable था। Researchers ने पाया कि वह आदमी अंदाज़ा लगा सकता है कि उसे दिखाया गया चेहरा खुश था या गुस्से में। और वह बिना किसी परेशानी के यह कर सकता था।
लेकिन हमारा subconscious mind senses से जो details receive करता है वह incomplete है। इसे information में बदलने के लिए हमारा conscious mind भी involve होता है। Subconscious mind सभी raw information को लेता है और उन्हें filter करता है फिर conscious mind उनके base पर decision लेता है।
Example के लिए, हमारी दोनों आंख में एक blind spot होता है जहां cells आंख को mind से जोड़ती है। हमारी आंखें भी हर second कई बार अनजाने में इधर-उधर झटके मारती हैं।
कभी बहुत ज्यादा, कभी बहुत कम और कभी focus के साथ, तो कभी थोड़ी कम focus के साथ। इस तरह आप आँखों में irregularities को notice करेंगे।
लेकिन subconsious mind देखी गयी चीज़ों की एक clear image बनाने के लिए दोनों आँखों से उसे दी गई information को collect करके पुरानी information और experiences से automatically सोचकर consiousely decision लेता है।
विचार 3
Body language हमें अनजाने में दूसरों के behaviour और opinion को explain करने की permission देती है।
हमारी body हमारे words की तरह ही expressive हैं। Body language के बिना, हमें दूसरे इंसानों के इरादों को समझने में मुश्किल होगी। Example के लिए, हममें से हर एक इंसान possible खतरों, दोस्ती और relation जैसी चीजों का इशारा करने के लिए body language का इस्तेमाल करते है।
हमें अपने पूर्वजों से body language का concept विरासत में मिला है, और यह इंसानों के लिए भी उतना ही natural और जरूरी है, जितना कि दुसरे जीवों के लिए।
Example के लिए, हम अपने भाइयों और बहनों के साथ शांति से रहना पसंद करते हैं और body language से इसी तरह के signals देते हैं, जबकि दूसरों के साथ defensive position में रहते हैं। इसी तरह अपने से ज्यादा powerful बंदरों के हमलों से बचने के लिए कमज़ोर बंदर अपने दांत खोल देते हैं, जबकि chimpangee मुस्कुराकर यानि दांत दिखाकर यह signal देते हैं, कि वे दूसरों के लिए खतरा नहीं हैं।
मुस्कान भी इंसानों के लिए important signal हैं और यह नकली नहीं बनायीं जा सकती। मुस्कुराने के लिए हमें मुंह के दोनों तरफ की muscles और आंखों के आसपास के हिस्से को transfer करने की जरूरत होती है, जो किसी purpose से ही होती है, इसे हम जानबूझकर इधर उधर नहीं कर सकते।
न सिर्फ इससे असली या नकली हंसी का पता चलता है बल्कि चेहरे के expressions असली हंसी के दौरान natural होते हैं। दुनिया भर की tribes डर या hate जैसे expressions की पहचान इसी तरह से करती है। हालाँकि, body language social signals को express करने तक limited नहीं है। इसके जरिये हम लोगों से अपनी उम्मीदों को communicate करते हैं और बिना किसी इरादे के उनके behaviour को भी influence करते हैं।
विचार 4
हमारी आवाज में छोटा सा बदलाव दूसरों के सामने हमारे attractiveness को promote करता हैं और हमारे character के nature को show करता हैं।
बहुत से लोग evolution की explanation यह कहते हुए करते हैं, कि आदमी dominance और sex चाहते हैं, जबकि औरते एक वफादार साथी और बच्चे चाहती हैं। इसका result हमारी body language, specially हमारी आवाज़ की tone और pitch से दिखता है।
दरअसल, sexual success के लिए आदमी और औरते अनजाने में अपनी आवाज को adjust करते हैं। एक research में आदमियों के एक group ने एक औरते के साथ date के लिए competition किया।
Results से पता चला, कि जब किसी आदमी से औरत ने बात करना शुरू की, तो उसने अपने competitors के comparison में ज्यादा powerful महसूस किया। इस तरह आदमियों ने औरते से और आपस में बात करते हुए, अपनी आवाज की pitch को कम और ज्यादा किया।
दुसरे result से पता चला कि औरते को ovulation के दौरान कम pitch वाली आवाजें अच्छी लगती हैं। उस समय औरते की आवाजें भी smooth हो जाती हैं, जो इस proceess के दौरान आदमियों को attract करती हैं।
अब आप सोच रहें हो कि औरते की कम pitch वाली आवाज़ों की तरफ आदमी subconsciously क्यों attract होते हैं, तो इसका जवाब testosterone system से जुड़ा है। Testosterone एक sexual hormone है, यह जिस आदमी में ज्यादा होता है, उसके बच्चे पैदा करने की सम्भावना ज्यादा होती है और ऐसे आदमी आमतौर पर औरते की कम pitch वाली आवाज़ की तरफ ज्यादा attract होते हैं और उनसे भी कम pitch वाली आवाज़ में बात करना पसंद करते हैं, जिससे औरते भी उन्हें कम testosterone और high pitch वाले आदमियों के comparison में, ज्यादा पसंद करती हैं।
यह तब पता चला जब एक psychologist Tanzanian जंगल के उन आदिवासी group से मिले, जिनके पास गर्भनिरोधक के कोई तरीके नहीं थे। उन्होंने पाया कि high testosterone वाले आदमियों ने ज्यादा बच्चों को जन्म दिया। यह show करता है कि औरते कम आवाज वाले आदमियों का favor क्यों लेती हैं।
लोग दूसरों की आवाज के base पर भी उनके character को analyze करते हैं। इस पर research करने के लिए, scientists ने vocal recordings लीं और उन्हें मिलाया ताकि इसके पीछे के मतलब के बिना आवाज की quality या pitch को सुन सकें।
उन्होंने आवाज़ की speed और pitch को भी adjust किया और पाया कि ऊँची आवाज़ें ज्यादा बेईमान और चिंतित थीं, और कम trustworthy थीं। धीमी आवाज़ें genuine और inspiring लगती थीं, लेकिन ज्यादा effortless लग रही भी। जबकि ऐसी आवाजें जो कभी तेज और कभी soft थीं, उन्हें motivated, knowledgeable और attract करने वाली माना गया।
Example के लिए, एक young leader के रूप में Margaret Thatcher अपनी party को जिताने के लिए public के बीच जाकर, अपनी speech से public का साथ हासिल करके party को ऊपर उठना चाहती थीं। लेकिन उसके साथ के members ने उनकी आवाज़ पर feedback देते हुए बताया, कि उनकी ऊँची आवाज़ थोड़ी ज्यादा loud है, उन्होंने अपनी pitch को कम करने के लिए कड़ी मेहनत की और end में उनकी नई powerful आवाज ने उन्हें United Kingdom का Prime Minister बनने में मदद की।
Margaret Hilda Thatcher बीसवी शताब्दी में सबसे लम्बे समय (1979–1990) के लिए United Kingdom की Prime Minister रही थीं और एकमात्र महिला थी, जिन्होंने यह जिम्मेदारी इतने लम्बे समय तक अच्छी तरह संभाली थी।
विचार 5
हम सब कुछ याद नहीं रख सकते, इसलिए हमारा subconsious mind हमारी यादों के gap को भर देता है – लेकिन यह हमेशा सही नहीं होता है।
हम अपने दिमाग की memory power को कितना भी पसंद करें लेकिन हमारा दिमाग video camera नहीं है, जो हमारे बाद के recall के लिए सब कुछ record कर रहा हो, क्यूंकि ज्यादा information हमारे दिमाग के लिए pressure बनने लगती है।
इसलिए दिमाग हर बात को याद रखने की बजाय, हमारी memories को हमारे कई सारे experiences जोड़ देता है, जिससे वो experience feel होते ही उससे जुडी सभी important information याद आने लगती हैं। Important memories में दोस्त और दुश्मन, शिकार और शिकारी शामिल हैं। कि वे कहाँ पाए जाते हैं और अपने घर कैसे पहुँचा जाए। इसे एक बार में आसानी से याद करने की काबिलियत हमें हमारे शुरुआती पूर्वजों से मिली है।
शायद आप सोच रहे होंगे कि याद रखने का यह तरीका हमें चीज़ों को समझने और बेहतर करने में मदद करेगा, लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है, क्यूंकि अगर हम अपनी लाइफ की हर memory को detail में याद रखें, तो यह एक बड़ी मुश्किल होगी।
Example के लिए, Solomon Shereshevsky नाम का एक आदमी अपनी amazing memory के लिए प्रसिद्ध था। वह बोले गए शब्दों की exact series को याद कर सकता था, लेकिन कई बार उसे याद किए गए sentences का मतलब समझ में नहीं आता था।
इसलिए उन्होंने याद रखने के साथ ही उनके मतलब को समझने के लिए speaker के बोले गए words को याद रखने के साथ ही साथ हर एक के कई face expressions को notice किया। इसलिए अगली बार उन्हें जाने-पहचाने चेहरों से जो बातें सुनी थी, उनके facial expressions को याद करके बातो को याद करने और speaker को पहचानने में कोई मुश्किल नहीं हुई।
हम आमतौर पर अपने experiences के छोटे छोटे हिस्सों को याद करते हैं, एक जैसे experiences को कहानियों से जोड़कर सब कुछ एक साथ रखने मदद मिलती है। हमारा subconsious mind ऐसा ही करता है।
यह ज़िन्दगी से जुडी अलग अलग यादों और उन moments की कहानियाँ बनाता है और उन्हें उस moment से जुड़े किसी experience से जोड़कर mind में store कर लेता है, इसलिए दोबारा उस experience को याद करने से ही पूरी कहानी दिमाग में घूमने लगती है।
लेकिन कभी कभी यह हमें गलतियाँ करने के लिए inspire कर सकता है। यह research से पता चला है कि, 25% गवाह एक lineup में से किसी गलत suspect को चुनते हैं, उनमें से 75% बेक़सूर होते हैं। ऐसे ही एक मामले में एक rape victim ने suspects में से उस आदमी को चुन लिया, जिसे वह rapist मानती थी, और उसे इस crime के लिए जेल जाना पड़ा।
लेकिन असली rapist lineup में नहीं था। इस मामले की अच्छे से जांच करते हुए DNA checkup के दौरान पता चला, कि असली rapist वो नहीं बल्कि दूसरा आदमी था। Victim ने दोनों आदमियों को देखने के बाद भी subconsious में बनी उस rapist की image को ठीक से पहचानने की बजाय, rapist के चेहरे को गलत तरीके से याद किया था।
विचार 6
हमारे emotions, subconsious biases और sensory data से generate होते हैं, इसलिए हमारा consious mind उनकी जड़ों को uncover नहीं कर सकता है।
मानव दिमाग हमारी feelings को समझने में मदद करने में पूरी तरह से capable नहीं है। यह evolution की legacy है – हमारे पूर्वजों की main inspiration zinda रहना और breed करना या अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाना था, न कि खुद को समझना, इसलिए उन्होंने इसमें अपना ज्यादा समय लगाया नहीं जिससे हमारे लिए अपने emotions को पहचानना और उनसे deal करना और मुश्किल हो गया।
यह मुश्किल इस fact से आती है कि हमारी feelings हमारे subconsious mind से produce होती हैं। Emotions इन तरीकों से काम करते हैं: आस पास का माहौल हमारी senses को data प्रदान करता है, जिसके लिए हमारा subconsious mind एक physical response करता है।
यह वह response है जिसे हम emotion के रूप में महसूस करते हैं। लेकिन क्योंकि वे हमारे subconsious से produce होते हैं, इसलिए हमें अपनी feelings को सही ढंग से समझने और पहचानने में मुश्किल होती है।
Example के लिए, एक research में, एक company के product का advertisement करना था, तो इसके लिए male और female को hire किया गया। Research में पता चला कि, male के मुकाबले जिन males को एक attractive female ने advertisement किया था उन्हें बाद में call करने की ज्यादा possibility थी।
ऐसा इसलिए था क्योंकि बढ़ी हुई heartbeat और आस-पास की awareness ने मिलकर एक emotional response पैदा हुआ जिसने उनके conscious mind में चुलबुलापन का रूप ले लिया। फिर भी हमारी feelings को समझने की यह disability हमें confidence से यह सोचने से नहीं रोकती है कि हम उन्हें share न करें।
जब हम अपने आप से पूछते हैं कि हम किसी को पसंद या नापसंद क्यों करते हैं, तो हम detail में बताने लगते हैं, लेकिन वे अक्सर हमारी subconsious feelings के सही signals नहीं होते हैं। एक study में, male competitors को दो औरते की तस्वीरें दी गईं और पूछा गया कि उन्हें कौन सी ज्यादा attractive लग रही है।
उन्होंने एक तस्वीर चुन ली। उसके बाद competitors को फिर से वही तस्वीरें दी गईं, लेकिन इस बार चेहरा नीचे कर दिया गया। उन्हें फिर से कार्ड देखने और यह समझाने के लिए कहा गया कि उन्होंने सिर्फ एक फोटो को ही क्यों पसंद किया। इस तरह कई अलग-अलग औरते की अलग अलग तस्वीरों के साथ यह study चलती रही। Competitors का सीधा जवाब था कि attractive लग रही हैं लेकिन वोह कोई भी subconsious में चल रही सही feelings को express नहीं कर पा रहा था।
Male competitors को नहीं पता था कि comparisons के लिए, researchers ने तस्वीरों को बदल दिया था। लेकिन अब भी उनके जवाब शुरुआती जवाबों की तरह ही थे। इस तरह हमारी भावनाएँ subconsious biases और आस पास के माहौल से मिले sensory data से generate होती हैं, इसलिए हमारा consious mind कई बार इसके reasons को नहीं समझ पाता।
विचार 7
जब हम पुराने सोच को defend करते हैं तो हम decisions लेने में one-sided होते हैं।
हमारा दिमाग दो opposite characters से मिलकर बना है। हमारे पास हमारा conscious mind है, जो एक scientist की तरह सोचता है – सबूतों को तौलता है और objective truth की तलाश करता है।
फिर subconsious दिमाग है, जो एक lawyer की तरह काम करता है। पहले decision लेता है, फिर उसे सही proof करने के लिए हर possible कोशिश करता है। Unfortunately हमारे लिए, हमारा lawyer दिमाग दो हिस्सों में से ज्यादा मजबूत है। यह हमें उन conclusions का support करने की तरफ ले जाता है, जो किसी alternative की तलाश करने के बजाय हमारे beliefs को मजबूत बनाते रहते हैं। साथ ही, यह हमें नज़रिये के according facts को organize करने और unfavorable evidence को अनदेखा करने के लिए inspire करता है।
हम सब ऐसा करते हैं; यहाँ तक कि scientists भी इस तरह के prejudices या पुराने beliefs से बचे हुए नहीं हैं। वे भी कभी-कभी lawyer consious या subconsious दिमाग से तरह सोचते हैं।
Example के लिए, 1950 और 1960 के दशक के शुरुआत में scientists के एक group का मानना था, कि Universe बिना किसी सुरुआत या end के एक static state में मौजूद है, जबकि दूसरे group का मानना था, कि यह एक बड़े धमाके के साथ शुरू हुआ था।
जब 1964 में radio astronomers ने बड़े धमाके के सबूत की खोज की और यह साबित हुआ कि Universe की शुरुआत एक बड़े धमाके से हुई, तो कुछ static state के supporters 30 साल बाद भी, बिना कोई ठोस सबूत होने के बावजूद अपने beliefs पर कायम रहे।
Predefined opinions या conditions इस बात से भी पता चलती है कि हम information को कैसे समझते हैं। यहां तक कि जब अलग-अलग लोगों को एक जैसी information दी जाती है, तब भी उनके पिछले beliefs influence करते हैं और वो अलग-अलग conclusions निकालते हैं।
विचार 8
हम सभी सोचते हैं कि हम special हैं और यह हमें अपनी capabilities को कम आंकने की तरफ ले जाता है।
1959 में, तीन mentally ill लोगो को एक साथ एक ही कमरे में रखा गया था, जो खुद को
Jesus मानते थे। सब यह जानने चाहते थे कि यह उनकी self-perception को कैसे affect करेगा।
जब उन्हें कुछ दिनों बाद बाहर लाया गया, तो एक ने अपना faith छोड़ दिया और अपने आप को एक normal इंसान की तरह accept कर लिया, एक ने दूसरे पर बहकाने का आरोप लगाया, जबकि तीसरा अब भी पूरी तरह से अपने आप को Jesus ही मान रहा था। इस तरह सबूत के बावजूद, तीन में से दो ने अपनी imagination को बरकरार रखा, वो अब भी अपने अंदर खुद को Jesus ही मान रहे थे।
यह सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन इस बताये गए example की तरह, हम भी अपने आपको अपने तरीके से special दिखाने की कोशिश करते रहते हैं। ताकि दुसरे respect करें।
यह अपने आपको एक generous self-image में express करने की चाहत से होता है, लोग ऐसा अक्सर तब करते हैं जब उनके views आम लोगों से मिलते जुलते नहीं हैं। Example के लिए, एक study में पाया गया, कि एक high school seniors में से 75 % students ने खुद को average या above average की rating दी जबकि 25 % ने खुद को top performer माना।
हालाँकि उनमें से सिर्फ 5% students ही topper बन पाए थे। इस तरह के खुद के बनाये हुए illusions, आने वाली life में भी बने रहते हैं जो लोगों को कई बार reality से दूर ले जाते हैं। इसलिए एक study से पता चला कि, college के 94% professors अपने काम को above average मानते हैं, जबकि वो average पढ़ाते हैं।
दुर्भाग्यवस, हमारा खुद के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया नजरिया, reality से अलग होता है। हमें लगता है कि चीज़ें reality में जैसे हो रही हैं हम उनसे बेहतर और तेजी से कर सकते हैं। इस तरह कई जगह उम्मीद से ज्यादा आशावादी होने से results पर फर्क पड़ता है।
अक्सर इस वजह से नई buildings और infrastructure जैसे projects budget से ज्यादा हो जाते हैं क्योंकि planners जरुरी समय से कम समय में उसे पूरा करने का goal बना लेते हैं।
Example के लिए, US General Accounting Office ने अंदाज़ा लगाया कि खरीदी गई नई military technology का सिर्फ 1% समय limit से पहले destribute किया गया था, जबकि reality में ऐसा नहीं हो सकता था।
यह वास्तव में हमारी गलती नहीं है। दरअसल development ने हमेशा से ही self confidence वाले लोगों का favor लिया और उन्होंने special बनकर respect लेने की demand की।
यह एक species के रूप में हमारे survival और growth के लिए important रहा है। इसके बिना हम एक fix society बने रहते, कभी growth के लिए कोशिश ही नहीं करते और शायद अभी भी पत्थर को औजारों में बदल रहे होते।
तो सिख यह है कि, अपने आप को special मानकर सीखना बंद न करें।
विचार 9
हमारा subconsious mind हमें sociable होने के लिए मजबूर करता है क्यूंकि exclusion के results में बीमारी शामिल है।
इससे पहले कि हम बात कर सकें या चल भी सकें, हम दोस्ती की तरफ attract होते हैं और दुश्मनी से पीछे हट जाते हैं। बच्चे उन लोगों के चेहरों को छूना पसंद करते हैं, जिन्हें वे दूसरों की मदद करते हुए देखते हैं, और जो लोग दूसरों को नुक्सान पहुँचाते हैं, वे उन्हें दूर भगाते हैं।
यह इस बात का सबूत है कि sociable होना, लोगों के साथ मिलना जुलना और दोस्ती करना हमारे nature में है। और ऐसा करने में हमारी मदद करने के लिए हमारा दिमाग hardware से भरा है। इसमें neocortex नाम का body part हमारी मदद करता है। Neocortex brain का सबसे नया हिस्सा है जो हमें लोगों के बीच relations को समझने में मदद करता है। हम society में इन skills का इस्तेमाल करने में capable हैं क्योंकि हमारे पास वह है जिसे scietist theory of mind कहते हैं।
सिर्फ इंसानों के पास यह समझने की अच्छी काबिलियत है कि हर कोई जो उनके साथ काम कर रहा है, वो कौन है, वे सभी एक-दूसरे से कैसे जुड़े हुए हैं और हर इंसान एक दुसरे से क्या चाहता है।
Researchers से पता चला है कि दिमाग में neocortex ratio और spicies के social groups के size के बीच सीधा relation है। इसलिए gorillas दस के समूह में एक साथ रहते हैं, macaques, बन्दर की प्रजाति 40 के समूह में और इंसानों का average समूह 150 लोगों से मिलकर बनता है। इसमें सिर्फ करीबी दोस्त नहीं बल्कि परिवार और relatives भी शामिल हैं और वे लोग भी जिनके साथ हम connected रहते हैं। लेकिन क्या होगा अगर हम sociable नहीं रहे या हमें अकेले छोड़ दिय जाएँ? Exclusion या अकेलेपन से न सिर्फ society से अलग होने की परेशान करने वाली feeling होती है, बल्कि physically कमज़ोरी भी feel होती है।
शारीरिक दर्द हमें दोतरफा attack से hit करता है। यह हमारी senses और हमारी feelings दोनों को उथल-पुथल करने लगता है। लेकिन मजे की बात यह है कि दिमाग का वह हिस्सा जिससे यह emotional factor जुड़ा हुआ है – The anterior cingulate cortex – यह वही area है जहां social pain होता है।
इसका मतलब यह है कि हम अपनी exclusion या अकेलेपन की feelings को कम करने के लिए pain killer दवा ले सकते हैं। लेकिन इसी के साथ यह भी साबित हो चुका है, कि socially exclusion या अकेलेपन से high blood pressure, मोटापा और life की उम्र कम होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए हमारा subconsious दिमाग हमें physically, mentally और emotionally healthy रहने के लिए sociable बनने के लिए push करता है।
विचार 10
हमारा social behavior दिमाग और subconscious आदतों के chemicals से निर्धारित (determine) होता है।
Scientists और philosophers लंबे समय से यह साबित करते आ रहे है कि इंसानी रूप में हम बहुत unique हैं। कोई दूसरी प्रजाति हमारी तरह मुश्किलों को नहीं समझ सकती। फिर भी हम उतनी remarkable प्रजाति नहीं हैं जितना हम सोचते हैं। दरअसल हमारे दिमाग के कई areas nature में पाए जाने वाले एक जैसे principles से चलते हैं। इंसान और जानवर दोनों का behaviour, mind के chemicals से चलता है। Example के लिए, दिमाग में कुछ chemicals के निकलने से हमें भरोसा करने की power मिलती है। फिर भी बहुत प्रजातियां और इन्सान कभी भरोसा और प्यार करते हैं, तो कभी नहीं करते।
Example के लिए, एक मादा भेड़ आमतौर पर कई बार तब अपने बच्चे पर गुस्सा करने लगती है जब वो दूध पीना चाहता है, सिर्फ जब वह पैदा करते समय ही उससे बहुत प्यार करती है। लेकिन पैदा के बाद, वह अपने पुराने गुस्से वाले रूप में वापस आ जाती है।
यह सब उसके दिमाग में oxytocin नाम के protein chemicals के शुरू और बंद होने के कारण होता है, जिसे females childbirth के दौरान भी महसूस करती हैं।
इंसान sexual intimacy के दौरान और यहां तक कि गले लगने पर भी oxytocin पैदा करते हैं, यह एक तरह का happy hormone है, जो हमें अच्छा महसूस करवाते है। यह सिर्फ chemicals नहीं है जो यह decide करे कि हम कैसे बातचीत करें और consiousely behaviour करें, बल्कि हम भी जानवरों की तरह behaviour के subconsious pattern को follow करते हैं।
Researchers यह पता लगाना चाहते थे कि normal conditions में लोग कितने आज्ञाकारी होते हैं। इसके लिए एक library में, एक researcher ने लोगों से उनके पास मौजूद photocopiers का इस्तेमाल करने के लिए कहा और उनसे पूछा, कि क्या वे उनके सामने राखी typing machine का इस्तेमाल कर सकते हैं।
बिना ज्यादा बात किये 40% लोगों ने मना कर दिया। लेकिन जब researcher ने दुसरे लोगों को एक कारण देकर machine का इस्तेमाल करने को पूछा तो मना करने का rate छह % तक गिर गया।
इस तरह हम इस conclusion पर पहुंचते हैं कि हम computer program की तरह subconsious rules के एक set को follow करते हैं। जब हमसे normally कोई बातचीत की जाती है तो हम सामने वाले की बातचीत के according बात करते हैं और जब तक कोई कारण न दिया जाए, हम agree नहीं करते। इस तरह अपनी life के पूरे मालिक होने के बजाय, हमारा maximum behaviour उन factors से determine होता है जिन पर हमारा बहुत कम control होता है।
विचार 11
लोग stereotypes और label पर भरोसा करते हैं, जो इस बात को influence करते हैं कि हम दूसरों को कैसे देखते हैं।
क्या आपको लगता है कि आप निष्पक्ष और open-minded हैं? हममें से कई लोग इन qualities पर गर्व करते हैं। लेकिन unfortunately, हमारी thinking के नीचे छुपे हुए कुछ unclear धारणा या पहले के बनाये हुए beleifs होते हैं।
इन धारणा में से एक यह है कि हम किसी के बाहरी रूप के base पर उसके character के बारे में राय कैसे बनाते हैं। Example के लिए, एक study में पाया गया कि अगर लोग बिना दाढ़ी-मूंछ कटवाए और wrinkled या गंदे कपड़ों में एक दुकानदार को देखते हैं और दुसरे को tie और press किये हुए कपडे पहने हुए देखते हैं, तो उनके अनुसार judge करते हैं।
Study में researchers को पता चला कि, जिन लोगों ने wrinkled या गंदे कपडे पहले हुए थे, उन्हें लोगों ने ऐसे treat किया उनमें कई कमियां हैं, जबकि जिन लोगों ने अच्छे कपड़े पहने हुए थे उन्हें सही तरीके से देखा गया। इस condition में आपने देखा कि कैसे लोग subconsious feelings से influence होकर ऐसा behave किया। यह तो सिर्फ एक है इसके अलावा हमारे mind में दबे हुए कई धारणा होती हैं जिनका पता लगाना मुश्किल है।
एक study के लिए America में Implicit Association ने एक test में लोगों को screen पर कुछ photos दिखाए और उनसे उसके बारे में comment करने के लिए कहा गया। इस test का एक चौंकाने वाला result यह था, कि 70 % लोगों ने काले लोगों को failure और गोरे लोगों को success जैसे शब्दों से जोड़ा और उस ratio में कई ऐसे लोग भी शामिल हैं जो खुद को non-racist यानि black मानते हैं।
इन छिपे हुए धारणा का यह अकेला example नहीं है। ये धारणा वास्तव में हमारी society को affect करते हैं। वे धारणा हमें जाने अनजाने में, बूढ़े लोगों को लापरवाह या मंदबुद्धि, या औरतों को पुरुषों की तुलना में कम काबिल के रूप में लेबल करने के लिए inspire आरती हैं। Media और culuture इस तरह की धारणा को फैलाने में मदद करते हैं।
यह घटना society में इतनी effectively चल रही है कि इससे बचने के लिए बहुत कोशिश करनी होगी। इसके लिए उन धारणा की पहचान करना पहला सबसे important कदम है। हम उन लोगों के साथ ज्यादा समय बिताकर इन decisions या धारणा से बचने की कोशिश कर सकते हैं जिन्हें हम label करते हैं, क्यूंकि साथ रहने से उनके बारे में समझने और साथ मिलकर काम करने की feelings आती है जिससे labeling को override करने में मदद मिलती है। अंतिम सिख यही है कि, हम अपने subconsious mind को control नहीं कर सकते लेकिन हम इसे manage करने की कोशिश कर सकते हैं।
विचार 12
समूह के साथ पहचान करने की आदत समूह members के favor में और non-members के खिलाफ धारणा को बढ़ावा देती है।
हम सभी के पास ऐसे groups होते हैं जिनके बारे में हमें लगता है कि हम उनके साथ जुड़े हुए हैं। ये groups gender, nationality, politics और religious belief जैसे groups हो सकते हैं। हम अपनी पहचान को उस condition के आधार पर बदलते हैं जिसमें हम खुद को पाते हैं।
Example के लिए, New Yyork के रहने वालों को ज्यादा wealth और race जैसे factors से एक अलग group में बांटा गया था, जिससे लोग एक दुसरे से बंटे हुए थे लेकिन जब World Trade Center पर हमला हुआ, तो लोगों ने इन पहचानों को पिघलते देखा और मिलकर मजबूत बनने के लिए सभी ने खुद को New Yorkers के रूप में देखना शुरू कर दिया। अपने group के लोगों साथ हमारे विचार बहुत match करते हैं इसलिए हम अक्सर दुसरे group के comparison में उस group के members की राय से अपने आपको जुड़ा हुआ मानते हैं और आसानी से agree हो जाते हैं।
Example के लिए, doctors और hairdressers जैसे professionals के एक research में पाया गया, कि वे सभी अपने profession के लोगों को उनकी पसंद और diversity के लिए दुसरे professions के comparsion में ऊंचा दर्जा देते हैं।
Group के लिए हमारा लगाव हमें दुसरे groups के members से excellence या बेहतर महसूस करने के लिए भी inspire करता है। एक research में Wassily Kandinsky और Paul Klee नाम के दो ऐसे artists को live performance करने के लिए बुलाया गया। एक को सबसे best और दुसरे को average perform करने के लिए कहा गया।
Normally तो best performer को सभी audience द्वारा पसंद किया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ, दुसरे singer की audience ने उनके average performance पर भी उनका ही साथ दिया, उन्हें ही पसंद किया।
इस example से पता चलता है कि एक समूह का हिस्सा होने से हमें psychological comfort मिलता हैं और हम उन लोगों के लिए धारणा दिखाते हैं जो group के सदस्य नहीं हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका group पूरी तरह से सही है या नहीं, हम हमेशा जाने अनजाने में दूसरों के comparison में अपने group का ही favor लेते हैं।
विचार 13
हम क्या खरीदते हैं से लेकर किसे vote देते हैं, हम life में अपने चुने जाने वाले options को base बनाते हैं।
किसी ने नहीं सोचा होगा कि company के नाम का pronounce उसके shares performance को affect करेगा। लेकिन वे करते हैं। जिन companies के नाम pronounce करना मुश्किल होता है, उनके fail होने की संभावना, उन companies के comparison में ज्यादा होती है, जिनके नाम का pronounce करना आसान होता है।
हमारी कई purchase इस तरह के छोटे reasons के base पर की जाती हैं। यह ऐसे reasons हैं जिनके बारे में हम कई बार अनजान होते हैं। Example के लिए, एक experiment में, club में background music ने customers को अलग अलग देश की शराब खरीदने के लिए influence किया। जब stage पर French गाना बजाया गया तो ज्यादातर लोगों ने French शराब खरीदी और जब German गाना बजाया गया तो ज्यादा German शराब खरीदी गई। जब पूछा गया, तो customers ने यह मानने से इनकार कर दिया, लेकिन subconsiousely वो उससे influence हुए थे।
यह सिर्फ हमारी purchasing आदतों में ही नहीं है। यहां तक कि हम political positions पर political parties को choose करना, उनकी policies के बजाय इस base पर करते हैं कि उनके main leader कैसे दिखाई देते हैं।
इसका एक example चुनाव के results को अपने favour में करने के लिए political parties प्रसिद्ध और लोगों द्वारा पसंद किये जाने वाले इंसान को अपनी party के leader के रूप में उतारती हैं।
निष्कर्ष
इस किताब का main massage है, हम इस बात से अनजान होते हैं कि हमारा subconscious mind हर समय क्या करता है – example के लिए, खतरे से बचने के लिए, खाना ढूंढने या powerful बनने के लिए यह हमेशा कुछ करता रहता है। यह इसी तरह से काम करने के लिए develop हुआ है, लेकिन इसका मतलब यह भी है, कि हम इसे समझ नहीं सकते, बल्कि इसके जरिये हम अपने साथ होने वाली घटनाओं को accuracy के साथ याद करने में सफल रहते हैं। इसकी बनायीं हुई धारणा से हम एक specific group में रहना comfortable मानते हैं।
किताब से हमने कुछ practical life विचारs समझे, जैसे, अपने favor में decisions लेने के लिए body language का इस्तेमाल करें। अगर आप बात करते समय किसी की आंखों को देखते हैं, उसे सुनते समय उनकी आंखों और चेहरे के दुसरे हिस्सों को देखते हैं, तो आप अपना influence करने की condition में पहुंच जाएंगे। यह subconsciously power की mentality को दर्शाता करता है जिससे सामने वाले को subconsciously आपकी power का experiences होता है। इसलिए दूसरों से eye contact बनाकर बात करें।
महत्वपूर्ण फैसले लेने से पहले अपनी body और दिमाग को शांत करें। अगर हम काम पर जाने में late हो जाते हैं, तो हमारी body adrenaline hormones का production करती हैं जिससे हमारा consious mind काम के बारे में कुछ ऐसे decisions लेने लगता है, जिसके बारे में हम आम तौर पर अनजान होते हैं।
इसी के साथ recently होने वाली घंटनाएँ और physical activities, present में हमारे decisions को influence करती हैं। इसलिए जब हम किसी घटना से घबरा जाते हैं या डर जाते हैं, तो subconsiousely अपने आपको कम attractive मानने लगते हैं, भले ही हम झूठी मुस्कान से अपनी ख़ुशी को इज़हार करने की कोशिश करें, लेकिन झूठी मुस्कान दूसरों का दिल जीतने के लिए काफी नहीं है।
इसलिए relax होकर महत्वपूर्ण फैसले लें। Quality के base पर सामान खरीदें, आस पास के माहौल से influence होकर नहीं। Club में drinking से जुड़े गाने बजते समय ज्यादातर लोग wine पीना पसंद करते हैं जबकि जब गाना न बज रहा हो तो फूलों वाला prepaid menu लोगों को खाना खाने के लिए inspire करता है।
इसके अलावा हम attractive packaging से influence हो जाते हैं और सोचते हैं कि इसका मतलब उसके अंदर भी अच्छी quality products होंगे, लेकिन कई बार असलियत में सामान attractive packaging के comparison में बेहतर नहीं होता है।
Subliminal किताब की समीक्षा
Leonard Mlodinow द्वारा लिखित “Subliminal” मानव व्यवहार पर अचेतन मन के प्रभाव पर प्रकाश डालती है, जिससे पता चलता है कि कैसे हमारे निर्णय छिपी हुई मानसिक प्रक्रियाओं द्वारा आकार लेते हैं।
Mlodinow धारणा, पूर्वाग्रहों और options को संचालित करने वाले सामाजिक संकेतों की शक्ति का पता लगाते है। रोचक ढंग से लिखी गई यह किताब हमारे अवचेतन की जटिलताओं पर प्रकाश डालती है, neuroscience और psychology के माध्यम से एक विचारोत्तेजक यात्रा की पेशकश करती है।
यह किताब इस बात पर जोर देती है कि हमारे कितने कार्य जागरूकता से परे शक्तियों द्वारा निर्देशित (directed) होते हैं। कभी-कभार वैज्ञानिक अवधारणाओं से भरपूर, “Subliminal” अंततः हमारे जीवन को आकार देने वाली सूक्ष्म शक्तियों पर एक मनोरम perspective प्रदान करती है, पाठकों को निर्णय लेने और मानव स्वभाव की उनकी समझ पर पुनर्विचार करने के लिए चुनौती देती है।
मैं आशा करता हु कि आपने इस summary से बहुत कुछ सिखा होगा। धन्यवाद्।
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