एक छोटे से गांव में एक Sam नाम का लड़का रहता था। अपने school के दौरान, Sam ने पारंपरिक (traditional) शिक्षा के साथ संघर्ष किया। वो classroom के माहौल में कभी comfortable ही नहीं हो पाया, जिससे किसी भी परीक्षा (exam) को pass करने में उसे बहुत ज्यादा ही मेहनत करनी पड़ती है।
तब भी उसके अंक (marks) न्यूनतम (minimum) ही आते थे। जैसे तैसे उसने school और college में pass किया। उसके बाद जैसे ही वो नौकरी (job) में गया, तो वहां भी उसे काफ़ी संघर्ष करना पड़ा। लेकिन उसे समझ आया, कि उसे अपने विचार, अपना दृष्टिकोण (approach), सब पर वापस से काम करना पड़ेगा। कोई भी पुराने नियम काम नहीं आएंगे। नए नतीजे पाने के लिए, कुछ नया करना होगा और उसने इसी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ना शुरू किया। उसने पुराना सब भूलकर, नई चीजों को सीखना शुरू किया। उसने अपनी ताकत पर काम करना शुरू किया।
उसने लोगों का निरीक्षण (inspection) करना शुरू किया, की एक सफ़ल इंसान किन सब चीजों को करके सफल हो रहा है। उसने महसूस किया कि, उसका सीखने का तरीका बहुत ही व्यावहारिक (practical) है। वो चीजों को करके देखते हुए, बेहतर ढंग से कर पर रहा था। वो थोड़ा धीमा था, लेकिन बहुत ही ज्यादा असरदार और धीरे-धीरे वो सफलता हासिल करता गया। पहले ही साल उसे अपनी company का best employee award मिला।
और ये सब इसलिए हुआ, क्योंकि वो ये समझ पाया, कि वक्त के साथ पुनर्विचार (rethink) करना, और अपनी पुरानी सीख, और सोच को बदलना बहुत ही ज्यादा जरूरी है। आज के वक्त में, Sam एक multinational company के top leader में से एक है, जहां वो लोगों को अभिनव (innovative) होने, और नए रास्ते पर काम करने की रणनीति (strategy) के बारे में सिखाता है।
परिचय
तो दोस्तों, आज हम एक ऐसी किताब के बारे में बात करेंगे, जिसके जरिए आप Rethink की शक्ति (power) को समझेंगे, इस किताब का नाम है, Think Again, जिसे Adam Grant ने लिखा है।
आम तौर पर (generally) हम अपनी राय (opinion) किस आधार पर बनाते हैं, जो आपने पढ़ा हो या सुना हो उसके आधार पर, लेकिन क्या कभी यह सोचा है कि ये राय एकतरफा भी हो सकता है, यानी आप किसी एक तरह के विचारों से प्रभावित (influence) भी हो सकते हैं।
जब हम जरूरत से ज्यादा प्रभावित होने लगते हैं, तो सही और गलत में अंतर (differentiate) करना बंद कर देते हैं और अपनी प्रभावित वाली राय को ही सही मानने लगते हैं। लेकिन एक समझदार इंसान होने के नातें सही और गलत चीज़ों में अंतर करना जरूरी है।
तो इसकी शुरुआत होती है skill of rethink से, यह तब होता है जब आप यकीन कर लेते हैं कि आप पूरी दुनिया की ज्ञान (knowledge) को नहीं जानते है और अभी भी बहुत कुछ सीखना बाकी है। कई लोग अपने पुराने मान्यताएं (beliefs) को ही सही मानते हैं, हालांकि वो मान्यताएं उस समय पर ठीक थे, लेकिन बदलते ज़माने के साथ कई चीज़े आज के हिसाब से उपयोगी नहीं रह जाती, इसलिए सही परिणाम को पाने के लिए चीज़ों को नए नज़रिये से देखना और नए तरीके अपनाना जरूरी हो जाता है।
जो लोग ऐसा नहीं करते, उनके लिए अपने पुराने मान्यताएं पर बने रहते हुए सच्चाई तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है, और जो लोग पुनर्विचार के लिए तैयार होकर, अपने आपको समय के साथ समायोजित (adjust) कर लेते हैं, वो कम से कम दूसरों की तरह दुखी नहीं रहते।
यानि अगर हम आँख बंद करके मान लेने की बजाय चीज़ों को खुले दिमाग (open mind) से समझें, तो इससे कई फायदे होंगे। ऐसे मान लेना कि पूरी दुनिया की ज्ञान का बहुत कम हिस्सा ही हम जानते हैं और जो आप जानते हैं उनमें से भी कुछ ही चीज़ें हैं जिनके बारे में हम पूरी तरह sure हो सकते हैं, यह हमें नया नजरिया अपनाने के लिए उत्साहित (motivate) करता है।
तो पुनर्विचार क्या है, यह कैसे काम करती है ? कैसे आप पुराने अनावश्यक मान्यताओं (unnecessary belifs) को छोड़कर नए उपयोगी मान्यताओं को अपना सकते हैं और अपने आस-पास के लोगों को अपनी राय से convince कर सकते हैं, कैसे अपने office में staff को हमेशा learning मानसिकता अपनाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, यह सब हम आज जानने वाले हैं।
अगर आप अपने घर या office में learning वातावरण (environment) को विकसित (develop) करना चाहते हैं और leader बनना चाहते हैं तो ये summary आपके लिए काफी उपयोगी होने वाली है। किताब को अच्छे से समझने के लिए हम इसके 4 महत्त्वपूर्ण भागों को एक-एक करके discuss करेंगे और सारांश (summary) के अंत में किताब के key points को मैं एक बार दोहरा दूंगा ताकि याद रखने में आसानी हो। इसलिए सारांश को अंत तक जरूर पढ़े।
तो चलिए शुरू करते है।
अध्याय 1: एक उपदेशक (preacher), अभियोक्ता (prosecutor), राजनीतिक (politician), वैज्ञानिक (scientist) और हमारा दिमाग
तकनीकों (technology) के बढ़ने के साथ ही जानकारी access करने की रफ्तार भी बढ़ती जा रही है। चिकित्सक क्षेत्रों (Medical sector) में 1950 से अगले 50 सालों तक जितनी जानकारी मिली, 2010 से अगले सात सालों में शोधकर्ताओं (researchers) को उससे ज्यादा जानकारी मिल चुकी हैं।
आज चारों तरफ जानकारियों की भरमार है, पहले की तुलना (comparison) में, आज हमें पलक झपकते ही कोई भी जानकारी आसानी से मिल सकती है। इसका मतलब है हमें इन जानकारियों के आधार पर बने हमारे मान्यताओं के बारे में जागरूक (aware) होना चाहिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की आपका IQ level कितना ज्यादा है, अगर आप अपने मान्यताओं को बदलने के लिए उत्साहित नहीं हैं तो आप पुनर्विचार (Rethinking) के कई अवसरों को miss कर सकते हैं।
जैसे क्या आप जानते हैं, दशकों पहले तक Pluto को Jupiter, Mercury, Venus की तरह एक ग्रह माना जाता था, लेकिन हाल ही में हुई शोध (research) में वैज्ञानिकों (scientists) को यह पता चला है कि pluto, solar system का हिस्सा नहीं है, इसे साबित करने के लिए कई सालों तक शोध चली और अब शोध में मिले data के आधार पर यह मान लिया गया है। इस नए मान्यताओं को मानने से चीज़ों को देखने के नए नज़रिये बनें और कई नए रास्ते भी बनें।
आम तौर पर जब हमें किसी एक बात पर शक (doubt) होता है तो हम दूसरे स्रोतों (sources) के जरिये उसकी सच्चाई को पुष्टि (confirm) करने की कोशिश करते हैं, जैसे अगर doctor आपके बारे में कुछ बताते हैं तो पुष्टि करने के लिए अक्सर दूसरे doctor से परामर्श (consult) लेते हैं, लेकिन जब यह हमारे राय के बारे में होता है तो हम इसे अनदेखा कर देते हैं, ऐसे में हमारे लिए अपनी राय को गलत मानना मुश्किल हो जाता है और उसे सही मानना आसान लगता है।
लेखक ने अपनी शोध में पाया कि हमलोग एक उपदेशक, अभियोक्ता, राजनीतिक, और एक वैज्ञानिक की तरह सोचते हुए, इससे प्रभावित होकर अपने जीवन के निर्णय (decisions) लेते हैं।
उपदेशक मानसिकता (mindset) में हमें ऐसा लगता है कि सामने वाला हमारे मान्यताओं को चुनौती (challenge) कर रहा है। अभियोक्ता मानसिकता को सोचने से हमें लगता है कि हम ही सही है और सामने वाला गलत है और राजनीतिक मानसिकता में हम लोगों को अपनी बात से मनाने की कोशिश करते हैं।
इन तीनों मानसिकता में समस्या यह है कि या तो आप सिर्फ अपनी मान्यताओं में ही रहने की कोशिश करते हैं, चाहे वो गलत ही क्यों न हो या फिर बिना सोचे दूसरों के प्रभावित कराने पर निर्णय लेने लगते हैं, सही निर्णय लेने के लिए यह तरीका सही नहीं है इसलिए इस तरह के मानसिकता से बचने के लिए हमें वैज्ञानिक मानसिकता को अपनाने की जरूरत है।
एक वैज्ञानिक की तरह जानकारी और data के आधार पर निर्णय लें। एक वैज्ञानिक की तरह चीज़ों को वास्तविक (realistic) तरीके से देखने की आदत डालें और ज्यादा से ज्यादा जानकारी इकट्ठा करें। वैज्ञानिक कभी भी अपने मान्यताओं पर आधारित चीज़ों को सही साबित करने की कोशिश नहीं करते, वो हमेशा सबूत (evidence) के आधार पर जो सही होता है उसे सही साबित करने की कोशिश करते हैं। यानी वो जानकारी के आधार पर निर्णय लेते हैं।
लोग अक्सर सोचते हैं कि smart होने का मतलब हर समय सही निर्णय लेना होता है लेकिन ऐसा नहीं है। अगर आप बदलती स्थिति के हिसाब से अपनी मानसिकता बदलने के लिए तैयार नहीं होते है, तो कभी सही निर्णय नहीं ले पाएंगे।
शोध में पता चला है कि जिनका IQ level ज्यादा होता है, उन्हें इस तरह के बदलाव करने में ज्यादा परेशानी आती है, क्योंकि वो अपने आज के मान्यताओं के बारे में बहुत कुछ जानते हैं इसलिए बदलते हालातों के अनुसार अपने मान्यताओं में थोड़ा भी बदलाव उन्हें पसंद नहीं होता और यह उन्हें अपनी बुद्धिमता (intelligence) के लिए असुरक्षित (insecure) करता है, ऐसे में यह मानना मुश्किल होता है कि वो गलत है, चाहे उनके सामने सबूत ही क्यों न रख दिए जाएं। ऐसे में चीज़ों को open minded होकर समझने की कोशिश करें।
अध्याय 2: पारस्परिक पुनर्विचार (Interpersonal Rethinking)
अक्सर जब हम अपने मान्यताओं के बारे में कोई अच्छी खबर सुनते हैं, तो अपने नज़रिये को लेकर खुश होते हैं और उस बारे में ज्यादा जानने के लिए प्रेरित होने लगते हैं, लेकिन जब हम उस मान्यता और राय के बारे में बुरी खबर सुनते हैं, तो दुखी होकर self doubt में फंस जाते हैं, इसी समय पुनर्विचार की जरूरत होती है, ताकि अपने दिमाग को खोल करके अनावश्यक मान्यताओं को पहचाने और उस बारे में दुबारा से सोचने के लिए प्रेरित हों।
हालांकि अपनी मान्यताओं के बारे में शक करना भी कभी-कभी ठीक होता है, लेखक इसे Imposter syndrome कहते हैं। यह ऐसी अनुभव है जो हमें किसी दुसरे की तरह बनने से रोकती है, लेकिन साथ ही अपने मान्यताओं को लेकर self doubt में भी डाल देती है। कुछ शोधों (researches) में यह पाया गया है कि, हमारे आस-पास के आधे से ज्यादा लोग career या जीवन की किसी और चीज़ को लेकर impostor हो जाते हैं, चाहे उन्होंने अपने जीवन में कितनी ही बड़ी कामयाबी हासिल कर ली हो।
Imposter syndrome कई मायनों में फायदेमंद होता है, जैसे यह अनुभव हमें अपनी मान्यताओं को सही साबित करने के लिए handwork करने को उत्साहित करती है और पुनर्विचार के लिए दिमाग को खोल देती है। Impostor विचार हमें smart work करने के लिए उत्साहित करती हैं।
1 lakh से ज्यादा लोगों पर की गयी एक शोध में पाया गया कि, औरतें नेतृत्व कौशल (leadership skills) को underestimate करती हैं और आदमी overestimate करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नेतृत्व को लेकर दोनों के मान्यतायें अलग-अलग होते हैं। इसलिए जब ऐसे मुद्दों पर दोनों में बातचीत होती है तो एक party को पूरी तरह से सही और दूसरी को पूरी तरह से गलत मानते हैं।
Formal debate में आपका मकसद होता है, जिस विषय पर debate की जा रही है उसके बारे में सामने बैठी श्रोता का mind change करना, यानी उन्हें convince करना कि वो आपके राय पर ध्यान दें। याद रखें, किसी एक चीज़ को लेकर लोगों के दिमाग में पहले से ही कुछ राय होते हैं। ऐसे में informal debate में speaker, श्रोता को अपनी मान्यताओं से मनाने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग debate को एक बहस की तरह मानते हैं जिसमें एक party के राय पूरी तरह से ठीक मानें जाते हैं जबकि दूसरी के बिलकुल गलत।
एक विशेषज्ञ (expert) thinker की तरह आपका मकसद यह होना चाहिए कि, अपने partner को अपने दृष्टिकोण की सच्चाई से जागरूक करवाएं। इसमें आप उन्हें open minded होकर आपके राय के बारे में सोचने के लिए उत्साहित करते हैं, न कि कई सारे कारण देकर उन्हें हराने या नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं, इससे उन्हें बुरा लग सकता है और आपके राय को सुनने के लिए वो open minded नहीं रहेंगे।
ध्यान रखें, अगर सामने वाला इंसान खुले विचारों वाला (open minded) नहीं है तो वो आपकी बातों पर ध्यान ही नहीं देगा। क्योंकि आप उन्हें उनके आज के मान्यताओं को चुनौती देते हुए convince कर रहे होते हैं कि अपनी मान्यताओं के बारे में दुबारा से सोचें कि वो गलत है और आपके सही मान्यताओं को मान लें। लेखक कहते हैं कि debate को dance की तरह देखें।
Dance में अगर आप अपने partner को नियंत्रित करने या lead करने की कोशिश करते हैं तो dance ख़राब हो सकता है, इसलिए आपका उद्देश्य (objective) उनके साथ moments को match करना है, इससे आप दोनों ताल से ताल मिलाकर अच्छा अभिनय (perform) कर सकते हैं।
आइये इस उदाहरण को देखते हैं जिसमें एक non professional मध्यस्थ (nagotiator) और विशेषज्ञ (expert) मध्यस्थ को एक deal fix करनी थी। शोधकर्ताओं ने दोनों के deal करने के तरीकों को study करके पाया कि non professional मध्यस्थ लोगों को कई सारे कारण देकर उनसे अपनी बात मनवाने की कोशिश कर रहे थे, वो अपनी बातों को सही साबित करने के लिए कई तरह के कारण दे रहे थे, जबकि दूसरी तरफ विशेषज्ञ अलग तरह से deal कर रहे थे, और बहुत ही कम कारण दे रहे थे।
जब आप अपनी बात को सही साबित करने के लिए कारण (reasons) देते हैं तो अनजाने में श्रोता को आपकी बात से असहमत (disagree) होने के कई कारण दे रहे होते हैं और एक बार अगर उन्हें असहमत करने का कोई point मिल गया तो बाकी की बातों से असहमत होना आसान होने लगता है और अंत में शायद वो आपकी बातों से सहमत ही न हों या बात बहस में भी बदल सकती है। विशेषज्ञ मध्यस्थ ऐसा नहीं करते, वो श्रोता के दिमाग को खोलने की कोशिश करते हैं।
उनका लक्ष्य श्रोता को अपनी राय से dominate करना नहीं होता बल्कि उनसे सवाल पूछकर अपनी राय के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करते हैं। वो श्रोता से सवाल पूछकर जानकारियां इकट्ठा करते हैं और इसके आधार पर बातचीत को ऐसे बिंदु (point) पर ले जाने की कोशिश करते हैं जिससे दोनों party सहमत हो जाएं और दोनों का फायदा हो।
यह व्यवहार दिखाता है कि आप एक खुले विचारों वाले इंसान है और सामने वाले की बातों को सुनने, समझने के लिए तैयार हैं। जब सामने वाले को लगेगा कि आप उनके राय को समझने में दिलचस्प हैं तो बदले में वो भी आपकी बातों को समझने में दिलचस्पी लेंगे और आपके राय से अपना mind change करने के लिए तैयार हो जायेंगे।
इससे आप उपदेशक, उपभोक्ता, और राजनीतिक जैसे नहीं लगेंगे, जो अपने आप को सही और दूसरों को गलत साबित करना चाहते हो बल्कि एक ऐसे इंसान लगेंगे जो सिर्फ सच्चाई तक पहुंचना चाहते हैं। यह चीज़ श्रोता की नज़रों में आपको ज्यादा भरोसेमंद इंसान बनाती है। शोधों में पता चला है कि ऐसे लोगों को सकारात्मक लिया जाता है। इसी के साथ खुले विचारों वाले रहने की गुणवत्ता (quality) व्यक्तिगत विकास (professional growth) में भी फायदेमंद होती है।
Human resource department ऐसे कर्मचारियों (employees) को hire करना पसंद करते हैं जिन्हें अपनी गुण (qualities) के साथ ही सीमाएं (limitations) भी मालूम हो, क्योंकि ऐसे लोग सीखकर सुधार करने के लिए तैयार रहते हैं।
अध्याय 3: Collective पुनर्विचार (rethinking)
क्या कभी आप इस तरह के बहस (argument) में फंसे हैं, जैसे climate change या political opinion को लेकर कभी आपकी बहस हुई हो, तो आपने notice किया होगा लोग बहुत जल्दी भावनात्मक (emotional) हो जाते हैं। एक अलग राय सुनकर हम लोगों की बात सुनना ही नहीं चाहते, उनकी बात पूरी होने से पहले ही हम मान लेते हैं कि हम सही हैं और दूसरा इंसान गलत।
और सारी परेशानियां यहीं से शुरू होती हैं, जो दो अलग राय वाले लोगों के बीच टकराव (conflict) को जन्म देती है। इस मानसिकता के लोग यह मानते हैं कि चीज़ें या तो सही हो सकती हैं या फिर गलत।
उदाहरण के लिए, abortion का मुद्दा ले लीजिये। कुछ लोग family planning को देखते हुए इसे smart work की तरह सराहना (appreciate) करते हैं वहीं कुछ social groups में ऐसा करने वालों को anti abortion के रूप में देखा जाता है जिसमें भावनाएं नहीं होते, अपने उद्देश्य (purpose) के लिए अपने ही बच्चे का गर्भपात (abortion) करवा देते हैं।
ऐसे में परिवार नियोजन (family planning) को प्राथमिकता देने वाले लोग गर्भपात को सही मान सकते हैं और anti abortion मानसिकता रखने वाले लोग इसको पूरी तरह से गलत मान सकते हैं। Anti abortion मानसिकता के लोग गर्भपात समर्थक लोगों को पूरी तरह गलत और गर्भपात न करवाने को पूरी तरह सही मान सकते हैं। लेकिन ऐसा करने से दोनों के बीच विवाद ही बढ़ेंगे। तो इसका समाधान इस बात को समझने में है कि एक ही चीज़ के अलग-अलग पहलू हो सकते हैं।
जैसे गर्भपात के case में ही देखें तो अगर किसी की नयी-नयी शादी हुई है तो ऐसे में गर्भपात न करवाना सही होगा और 2 babies के बाद अगर आप 3rd baby नहीं चाहते तो अब गर्भपात best option होगा। इसका समाधान इस बात को समझने में है कि किसी एक विषय पर एक से ज्यादा नजरिया भी हो सकता है।
हर बात का हां या ना में जवाब नहीं होता, हमें अंतिम निर्णय लेने से पहले कई बातें consider करनी होती हैं और विषय के कई पहलुओं पर गौर करना होता है, यह flexible मानसिकता, आपको लोगों की नज़रों में humble महसूस कराएगा, यह आदत आपको ऐसा इंसान दिखाती है जो ईमानदारी से यह मानने के लिए तैयार है कि इस विषय के बारे में उन्हें कुछ चीज़ें नहीं पता हैं, उन पर पहले कभी गौर नहीं किया गया और अब जानने के लिए तैयार हैं।
New york की एक lab में इससे संबंधित एक research conduct की गयी, जहाँ गर्भपात (abortion) के बारे में अलग-अलग राय रखने वाले दो लोगों को 20 minute के लिए बात करने के लिए कहा गया, अंत में दोनों को एक दूसरे के दृष्टिकोण से सहमत या असहमत करना था। फिर इस research को group में conduct किया गया।
शोधकर्ताओं ने यह पाया कि, शुरुआत में दोनों group एक दुसरे की राय से पूरी तरह असहमत थे लेकिन खुले दिमाग से एक दुसरे group की राय को समझने के बाद इस नतीजे (conclusion) पर पहुचें कि, survival के लिए यह अलग-अलग हो सकता है। जहां जनसंख्या (population) कम है वहां इसे संतुलित करने के लिए birth rate को बढ़ाना चाहिए और गर्भपात को कम करना चाहिए और जहां जनसंख्या ज्यादा हों वहां इसे नियंत्रित करने के लिए गर्भपात करवाने में कोई दिक्कत नहीं है।
लेखक ने अपने organizational experience में यह पाया है कि, जिन संगठनों (organizations) और companies में learning culture strong होता है वहां पुनर्विचार की आदत को आसानी से विकसित किया जा सकता है। क्योंकि ऐसे office culture में लोग अपनी ज्ञान की सीमा जानते हैं, उन्हें पता होता है कि कई ऐसी चीज़ें हैं जिनके बारे में वो नहीं जानते हैं इसलिए खुले दिमाग का होना आसान हो जाता है। ऐसे लोगों में नयी चीज़ें सीखने और कोशिश करने की इच्छा भी ज्यादा होती है।
आइये इस उदाहरण में देखते हैं कि कैसे पुनर्विचार न करने से एक इंसान की जान जाते- जाते बची।
NASA के एक space program में कुछ अंतरिक्ष यात्री (astronauts) अंतरिक्ष (space) में गए। अंतरिक्ष यात्री Adam और उनके दोस्त spacewalk कर रहे थे तभी Adam को गर्दन के पीछे कुछ leakage सा महसूस हुआ। Leakage इतनी ज्यादा थी कि यह पसीना तो हो नहीं सकता था इसलिए Adam ने तुरंत इसकी जानकारी space crew को दी।
Space crew ने उन्हें अंतरिक्ष यान (spaceship) के अंदर आने के लिए कहा। सुरक्षित अंतरिक्ष यान में पहुंचने के बाद उन्हें पता चला की Adam का drink bag leak होने लगा था, drink bag अंतरिक्ष यात्री की पीठ पर बंधा हुआ एक तरह का waterbag होता है जिससे अंतरिक्ष यात्रियों को hydrated रहने में मदद मिले। हालांकि spacewalk पर जाने से पहले Adam ने थोड़ी leakage महसूस की थी लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया।
Adam ने overconfident में आकर उसे छोटी सी चीज़ मानकर अनदेखा कर दिया। समय रहते अंतरिक्ष यान में पहुंचकर drink bag बदल लेने से वो बच गए वरना उनकी जान भी जा सकती थी। NASA ने पिछली गलतियों की तरह इससे भी एक सबक सीखा कि, ज्यादा बुद्धिमान होने और बुद्धिमान लोगों में रहने से हम अक्सर overconfident का शिकार हो जाते हैं और उन चीज़ों को मामूली समझकर अनदेखा कर देते हैं जो शायद महत्वपूर्ण हो सकती हैं, इसलिए हमेशा पुनर्विचार करते रहना चाहिए।
अपने staff को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वो अपने काम की समीक्षा (review) करते रहें, उसमें सुधार करते रहें और काम को दूसरों के नज़रिये से देखने की भी कोशिश करें।
अपनी company के work culture में भी लोगों को योजना के लिए प्रोत्साहित (encourage) करने के लिए उन्हें प्रेरित करें कि अपने काम के बारे में नयी-नयी चीज़े सीखते रहें, अन्वेषण (explore) करते रहें और NASA की तरह अपने काम की समीक्षा (review) करते रहें, उसमें सुधार करते रहें और काम को दूसरों के नज़रिये से देखने की भी कोशिश करें। यह आदत किसी भी चीज़ पर लागू हो सकती है। आप इसे अपनी व्यक्तिगत जीवन में भी अपना सकते हैं।
जैसे project presentation का उदाहरण लेते हैं। आपने नोटिस किया होगा प्रस्तुति (presentation) देते समय हमेशा अब तक के सबसे best तरीके को ही अपनाने को प्राथमिकता (priority) दी जाती है। लोग ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उस तरीके से पहले भी अच्छी प्रस्तुति दी जा चुकी है इसलिए वो test and try method है।
हालांकि short term के लिए इस मानसिकता से काम करना ठीक है क्योंकि आप एक best तरीके को follow कर रहे हैं और बदले में अच्छे परिणाम मिल रहे हैं। इसी के साथ plan भी करें कि इसमें क्या-क्या सुधार किये जा सकते हैं, कैसे इसे आसान और ज्यादा उपयोगी बनाया जा सकता है। योजना बनाने से आपकी company बदलती market की जरूरतों के हिसाब से अपने आपको बदल लेगी और market में service कर लेगी, लेकिन योजना नहीं बनाने से हो सकता है आपके आज के तरीके बहुत अच्छे परिणाम दे रहे हों, लेकिन भविष्य में वो उपयोगी नहीं रहेंगे।
इसलिए कोशिश करें कि आपकी company अपने employees को नयी चीज़ें सीखने और innovate करने का मौका दे, उन्हें रचनात्मक (creative) तरीके से सोचने और नयी चीज़ें innovate करने के लिए जरूरी resources provide करवाए, न कि सिर्फ परिणाम पर आधारित काम करने के लिए कहे।
अध्याय 4: Suncoast को escape करना
हम में से कई लोग एक ही योजना (plan) लेकर बड़े होते हैं। शायद आपने भी बचपन से ही सोच लिया होगा कि बड़े होकर engineer ही बनना है और फिर सारी academic planning इसी लक्ष्य के अनुसार हो जाती है, लेकिन क्या होगा अगर यह योजना असफल हो जाये? ऐसे में आपका अगला कदम क्या रहेगा? आप क्या करेंगे? अगर कुछ unexpected हो जाये तो? ऐसे मानसिकता के लोग कभी भी अपनी योजना के बारे में पुनर्विचार करना जरूरी नहीं समझते।
वो बस एक लक्ष्य तय कर लेते हैं उसके लिए एक रणनीति बना लेते हैं और फिर उसी को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ते रहते हैं। ऐसे में जब एक रणनीति असफल होती है, तो हम और ज्यादा कोशिश करते हैं लेकिन अपनी रणनीति को नहीं बदलते हैं, ऐसी स्थिति से निपटने के लिए आपको हमेशा योजना B लेकर चलना चाहिए। Entrepreneurs के लिए तो यह तरीका बहुत जरूरी है। शोधकर्ताओं ने जब इस बारे में शोध (research) की कि क्यों लोग योजना B को नहीं अपनाते हैं, क्यों असफल होने के बावजूद लोग एक ही रणनीति से चिपके रहते हैं तो इसका कारण है Suncoast factor।
इसका मतलब यह है कि किसी चीज़ के गलत होने के बावजूद उसे बार – बार करने में लगे रहना। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि आपने उस योजना में अपना काफी पैसा, समय और resources लगा दी हैं, इसलिए अपने आपको सही साबित करने के लिए हम सब कुछ करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में चाहे सबूत से आपकी रणनीति गलत ही क्यों न साबित हो रही हो लेकिन उसे सही साबित करने में आप पूरी मेहनत करते हैं।
अक्सर सीधा-सीधा निर्णय लेना हमें आसान लगता है। जैसे 11th standard में आप यह सोचकर commerce ले लेते हैं कि business करेंगे। लेकिन बाद में आपको accounting boring विषय लगने लगता है तो ऐसे में कई लोग उदास होते हैं, लेकिन accounting की बजाय आप sales या financial management की field में अपना business कर सकते हैं।
हमेशा नयी संभावनाओं (possibilities) के लिए अपने दिमाग को खुला रखें; यह आदत आपकी growth में काफी मदद करेगी। लेकिन दुर्भाग्यवश (unfortunately) ज्यादातर लोग अपने आपको अपनी विकल्पों के बारे में पुनर्विचार करने का मौका ही नहीं देते। पुनर्विचार करने से आप पाएंगे कि जो काम आप सालों पहले करना चाहते थे वो शायद आज न करना चाहें। जो चीज़ आपको अच्छी नहीं लगती उसे करने के लिए Suncoast को खुदपर हावी न होने दें। कई छात्र ऐसा नहीं कर पाते। जो
आजीविका उन्होंने 18 की उम्र में देखा था आज भी उसके अनुसार योजना करते हैं और 8 साल बाद अपनी नौकरी से बुरी तरह ऊब जाते हैं। इसका समाधान यह है कि दुसरे career विकल्पों और संभावनाओं को अपने ध्यान में रखकर चलें। किसी चीज़ को छोड़ देने और नया कोशिश करने से डरे नहीं।
Career choice के लिए यह बात काफी हद तक सही है। कई बार बाद में आपको पता चलता है कि जो काम कर रहे हैं वो पसंद नहीं है और दुसरे काम में अच्छे हैं। ऐसे में जो रणनीति काम नहीं कर रही तो उसे छोड़कर नए तरीके को अपनाएं। यहाँ तक की अगर इसके लिए अपनी आज की job को बदलने की जरूरत लगे तो बदल सकते हैं।
लेखक कहते हैं कि, योजना (plan) और लक्ष्य का होना ठीक है, कभी-कभी यह हमें अपने vision की तरफ जाने में मदद करते हैं, लेकिन सिर्फ एक ही योजना के liye प्रतिबद्ध (committed) होकर दूसरे विकल्पों के बारे में न सोचना, आपको परेशानी में डाल सकता है, इसलिए दूसरी योजना भी दिमाग में लेकर चलें। योजना से आप अपने आजीविका (career) के साथ-साथ संबंधों, स्वास्थ्य और जीवन के जरूरी पहलुओं को बेहतर कर सकते हैं। इसके लिए अपना दिमाग खुला रखें।
आजीविका (career) पुनर्विचार के लिए महीनें में एक बार यह करें :
- उन लोगों को notice करें जिनसे आप प्रेरित होते हैं और observe करें कि वो अपने day to day जीवन में क्या करते हैं ?
- उनके रहने, व्यवहार करने और काम करने के style को notice करें और देखें कि वो आपके interests, कौशल (skills), working styles और values के साथ कितने ज्यादा match करते हैं।
- अपने आपको समय-समय पर test करते रहें। इसके लिए बस testing के purpose से interview दे, study कर रहे हैं तो प्रशिक्षण (internships) करे ताकि आपके काम का test होता रहे।
निष्कर्ष
तो दोस्तों इस summary में आपने जाना कि हम अपने पुनर्विचार और मान्यताओं को बनाने और उन्हें सही साबित करने में बहुत सारा समय लगाते हैं और बहुत कम समय यह मूल्यांकन (evaluate) करने में देते हैं कि वो मान्यतायें और पुनर्विचार ठीक हैं या उन्हें सुधारने (improve) की जरूरत है, इसलिए पुनर्विचार करके समय-समय पर यह check करते रहना चाहिए कि आज का तरीका कितना सटीक है। आइये अब सीखे हुए अध्यायों को एक बार दोहरा लेते हैं जिससे आपको आसानी से याद रहें :
- सबसे पहले याद रखें कि हम सब कुछ नहीं जानते हैं, इसलिए हमेशा सीखने के लिए तैयार रहें। ज्यादातर लोग अपना निर्णय तीन मानसिकता उपदेशक, अभियोक्ता, और एक राजनीतिक से प्रभावित होकर लेते हैं, इससे कई बार सच्चाई तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है, इसलिए वैज्ञानिक मानसिकता से तथ्य के आधार पर अपने निर्णय लें।
- अगर आप चाहते हैं कि लोग आपके दृष्टिकोण पर भी गौर करें तो अपने आप को सही साबित करने के कारण देने की बजाय उनसे सवाल पूछकर अपने views के बारे में जानने की जिज्ञासा (curiosity) बढ़ाएं।
- हर चीज़ के कई अलग-अलग पहलू हो सकते हैं इसलिए अपने दृष्टिकोण (point of view) से दुसरे को dominate करने की कोशिश न करें बल्कि आपसी समझ (mutual understanding) के साथ दोनों के नज़रिये को समझें, इससे आप उस विषय के बारे में एक नए नज़रिये से जागरूक हो जायेंगे।
- हमेशा अपनी वर्तमान रणनीति के बारे में पुनर्विचार करते रहें, सोचें कि क्या इससे बेहतर किया जा सकता है। अगर आप एक businessman हैं तो सोचिए कि, कैसे आने वाले समय में market की demand को देखते हुए अपने product और काम करने के तरीके को बदलेंगे।
तो दोस्तों, अब वक्त आ गया है ये बताने का कि इस किताब की सबसे अच्छी बात क्या थी, जो आपने बस अभी सीखी और जिसको आप अपने जीवन में 100% लागू करेंगे।
Think Again किताब की समीक्षा
Adam Grant द्वारा “Think Again” एक thought-provoking और व्यावहारिक किताब है जो पाठकों को अपने विश्वासों पर पुनर्विचार करने और बौद्धिक विनम्रता की शक्ति को अपनाने की चुनौती देती है।
Grant का तर्क है कि हमारा समाज नए विचारों के लिए खुले रहने और अपने दिमाग को बदलने के बजाय अपनी राय पर टिके रहने और उनका बचाव करने पर केंद्रित है।
वह जिज्ञासा (curiosity), संदेह और निरंतर सीखने के महत्व पर जोर देते हुए “पुनर्विचार” मानसिकता को अपनाने के लिए व्यावहारिक रणनीति प्रदान करते है।
Grant की आकर्षक कहानी और साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण “Think Again” को एक सम्मोहक reading बनाता है जो व्यक्तिगत विकास और सत्य की खोज को प्रोत्साहित करता है। बौद्धिक agility और लचीलापन चाहने वालों के लिए यह अवश्य पढ़ें जाने वाली किताब है।
धन्यवाद।
Contents
Just read and i see this world a different angle ☺️
It’s to good book👍🏻